आज-कल लगातार बदलती लाइफस्टाइल की वजह से हमारे सोने और जागने का समय भी बदल गया है। हम कितने बजे सोएंगे और कितने बजे सोकर उठेंगे इसका कोई निर्धारित समय नहीं है। आपको बता दें कि इससे आपको शारीरिक रूप से तो नुकसान पहुंच ही रहा है साथ में मानसिक रूप से भी इसका नकारात्मक असर पड़ता है। हम रात में फोन व लैपटॉप में खुशी ढूंढते हैं और जब प्रकृति के साथ घुलने का समय आता है, तब हमारी सोने की तैयारी हो जाती है। भारतीय संस्कृति से वाकिफ लोगों ने ब्रह्ममुहूर्त के बारे में तो जरूर सुना होगा। मोटे तौर पर हम ये भी जानते हैं कि पूजा-पाठ के लिहाज से यह समय सबसे अच्छा होता है। मगर यह समय सेहत के लिहाज से भी कई मायनों में बहुत लाभदायक होता है।
ब्रह्ममुहूर्त की हवा अमृत के समान है
आयुर्वेद के अचूक समाधानों का सम्मान आज कल सभी करते हैं। उसी के हवाले से हम आपको बता देना चाहते हैं कि ब्रह्ममुहूर्त में बहने वाली हवा को अमृत के समान माना जाता है, इसीलिए कहते हैं कि इस वक्त उठकर टहलने से शरीर में शक्ति आती है। वैज्ञानिक रिसर्च में यह बात सामने आई है कि ब्रह्ममुहूर्त में ऑक्सीजन की मात्रा सबसे ज्यादा होती है, ऑक्सीजन को प्राण वायु कहा जाता है। इससे आपके पूरे शरीर को अच्छा एहसास होता है, खासकर फेफड़ों को बहुत आराम मिलता है जो प्रदूषण की भट्टी में दिन-रात जलते हैं। हम मानते हैं कि शहर में रहने वाले ज्यादातर नौकरी-पेशा लोग ब्रह्ममुहूर्त का आनंद रोजाना नहीं ले सकते, क्योंकि उनकी नौकरी ऐसी होती है। मगर कोशिश करनी चाहिए कि जब भी समय मिले, तो ब्रह्ममुहूर्त का आनंद लें क्योंकि इस वक्त पॉल्यूशन का लेवल सबसे कम होता है।
ब्रह्ममुहूर्त का सही समय
आमतौर पर कहा जाता है कि ब्रह्ममुहूर्त का समय तड़के 4 से 5 बजे का होता है। शास्त्र भी यही कहते हैं कि रात के आखिरी प्रहर का तीसरा हिस्सा या चार घड़ी तड़के का समय ब्रह्ममुहूर्त होता है। आजकल के दौर में शास्त्रों के हिसाब से चलना काफी कठिन होता है, इसलिए आप इतना ही समझ लें कि अगर आप तड़के उठ सकते हैं, तो जरूर जरूर उठ जाएं। क्योंकि इससे आपको प्रकृति का अद्भुद नजारा इसी समय में मिल जाएगा।